Monday, 21 November 2011

धूप कुंदन

डा० सुरेन्द्र वर्मा

ISBN-978-81-88494-58-3
प्रथम संस्करण २००९ ई

पृष्ठ ११२, हार्ड बाउंड
प्रकाशक- उमेश प्रकाशन
लूकरगंज, इलाहाबाद
मूल्य १२५ रुपए

अंधेरी रात
चुनौती ली तारों ने
जागते रहो।

खेत गेंदे का
उठाता है लहरें
पीली सुगंध।

चुप थी घाटी
जाग गई सहसा
चिड़िया बोली।

छोटी सी धार
चट्टानों को काटती
झरना बनी।

तुम्हारी हँसी
भीगे हुए चनों में
फूटे हैं किल्ले।

बिछ गए हैं
सूर्य के स्वागत में
हरसिंगार।

शाम होते ही
झुका सूरज, लाल
हो गई नदी।

सर्द रात में
एक अकेली हवा
बजाती सीटी।

सहमी डरी
झरतीं चुपचाप
पीली पत्तियाँ।

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